वह उधर रुख से पर्दा हटाने लगे,
अब कसम टूट जाये तो मैं क्या करूं,
चूम लूँगा खुदा की खुदाई को मैं,
वह सनम रूठ जाये तो मैं क्या करूं ||
गेसू काली घटा नैन कजरा भरे,
इनके जलवों पे कैसे कोई न मरे,
जब मैं कजरारे नैनों से पीने लगा,
यह कदम लड़खड़ाये तो मैं क्या करूं ||
चांदनी रात है चाँद ढलता गया,
आपक हुस्न को देख शरमा गया,
उम्र बारी अकेले न घूमा करो,
कोई दिल लूट जाये तो मैं क्या करूं ||
ज़ुल्फ़ बिखरी तो सावन महीना हुआ,
जिसने देखा पसीना पासीना हुआ,
ए "पदम्" फूल इतने चमन में खिले,
अब कली रूठ जाये तो मैं क्या करूं ||
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