Sunday, January 7, 2018

Draupadi Kehne Lagi Krishna Bhaiya Se


तर्ज :- कव्वाली

द्रोपदि कहने लगी कृष्ण भैया से यूं,
चीर खीचे दुशासन गजब हो गया,
पापी के हाथों से एक अबला का यूं,
नग्न होता है यौवन गजब हो गया।।

 पांचो पांडव जुए में मुझे हार कर,
आज बैठे हुए हैं यह मन मार कर,
तेरी बहना की अस्मत लुटी जा रही है,
सामने बैठे अर्जुन गजब हो गया ।। द्रौपदी ।।

जबकि प्रहलाद ने ध्यान तेरा किया,
खम्ब से तुमने उसको बचा ही लिया,
लाज मेरी कन्हैया तेरे हाथ है,
बड़ा व्याकुल है यह मन गजब हो गया ।। द्रौपदी ।।

वह सभा में खड़ी द्रौपदी रो रही है,
अश्रु धारा से वह अपना मुख धो रही है,
इस तरह तुमसे रो रो के विनती करे,
ज्यो बरसता है सावन गजब हो गया।। द्रोपदि।।

खींचते खींचते  जब दुशासन थका,
दुष्ट द्रोपदि नग्न फिर भी कर न सका,
धीर मन को हुआ सोचा द्रोपदि ने यूँ,
अा गया मेरा मोहन गजब हो गया ।। द्रोपदि।।

लाख चौरासी के नर का जीवन मिले,
किस तरह से कन्हैया का दर्शन मिले,
मुरली वाले के चरणों में हमने "पदम्"
ज़िन्दगी कर दी अर्पण गजब हो गया ।। द्रौपदी ।।

-:इति :-

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