-----तर्ज़:-मेरे रशके कवर,तूने पहली नज़र -----
!!भजन!!
माँ का दर चूम कर,सारे ग़म भूल कर।
मेने अर्जी लगाई,मज़ा आ गया।।
दर बदर घूम कर,मैया के द्वार पर,
मेने झोली फैलाई,मज़ा आ गया।।
(१)सिंह पर बैठ कर माँ भवानी चली,
दुष्ट दानव पे माँ की दुधारी चली।
रण में संघार कर,दुष्टों को मार कर,
मुंडमाला बनाई,मज़ा आ गया।।
(२)माँ की कृपा के बादल बरस जाएंगे,
सबके बिगड़े मुकद्दर सवर जाएंगे।
बात बन जाएगी,झोली भर जाएगी,
माँ से आशा लगाई,मज़ा आ गया।।
(३)आसरा इस जहां का मिले न मिले,
माँ के दर पे "पदम" को ठिकाना मिले।
आ गए द्वार माँ, कर दो उपकार माँ,
माँ की महिमा को गाई, मज़ा आ गया।।
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