लगाओ न देर हनुमान रे, बूटी लाना पहचान रे,
कहीं निकल न जाये - 2, मेरे लक्ष्मण के प्राण रे,
घायल हुए -2, लगे शक्ति के बाण रे ।। लगाओ ।।
द्रोणागिरी पर्बत पे जाऊंगा में,
बूटी संजीवन को लाऊंगा में,
श्री राम रोते बिलखते रहे,
रो रो कर हनुमत से कहते रहे ।। कहीं निकल ।।
जैसे ही पर्बत पे पहुंचे बलि,
चहुँ और बूटी चमकती मिली,
पर्बत उठाकर बलि चल दिये,
धरा पर गिरे तब भरत मिल गए,
भरत ने कहा सखा जल्दी करो,
लखन लाल की जाए विपता हरो ।। कहीं निकल ।।
मांगी बिदा फिर पवन सूत चले,
सभी राम दल में थे व्याकुल बड़े,
जो लाके दी बूटी अचरज हुआ,
"पदम" राम के मन को धीरज हुआ ।।
-: इति :-
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